धन्य त्या शिवबाची
ज्याने प्राण देशासाठी वाहिला,
आम्ही मात्र जितेपणी
देश गुलाम होताना पाहीला.
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इथल्या चिरेबंदी दगडांनी
इतिहासाची जुळणी केली,
भूखंड खाऊन पुढा-यांनी
इतिहासाची गुळणी केली.
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जनतेचाच पैसा खाऊन
वर "कोण म्हणतो येणार नाय "
लोकशाहीच कवच पांघरून
कासव घेतो पोटात पाय.
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कवी -- संजय माने ,महाड
ज्याने प्राण देशासाठी वाहिला,
आम्ही मात्र जितेपणी
देश गुलाम होताना पाहीला.
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इथल्या चिरेबंदी दगडांनी
इतिहासाची जुळणी केली,
भूखंड खाऊन पुढा-यांनी
इतिहासाची गुळणी केली.
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जनतेचाच पैसा खाऊन
वर "कोण म्हणतो येणार नाय "
लोकशाहीच कवच पांघरून
कासव घेतो पोटात पाय.
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कवी -- संजय माने ,महाड